Thursday, June 8, 2017

मेरे पति.... एक बिगड़े बच्चे!!!

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मुम्बई की बारिश!! मानसून वाली तो नहीं है पर हां अभी गर्मी से राहत दिलाये हुए है और मेरे मन मस्तिष्क की तरंगों को शब्दों में पिरोने का कारण बने हुए है। बारिश का सीधा संबंध प्यार से जुड़ जाता है और प्यार शब्द आते ही पतिदेव की याद आ जाती है और इनकी याद आते ही...........शाम को खाने में क्या बनाओ ये याद आ जाता है😉😂 ऐसा नहीं है,Unromantic होने का लाँछन तो नहीं लगा सकती अपने पति पर क्योंकि शादी के 4 साल के बाद भी उनके प्यार को दर्शाने के तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया है भाग्यवश, लेकिन उनके बचपन से घर में रहने के Side effects मुझे अभी भी झेलने पड़ते हैं कहीं ना कहीं!!

जी! मैं एक छोटे कस्बे से तालुक्क रखती हूं तो मुझे स्कूल खत्म करते ही आगे की पढ़ाई के लिए घर छोड़कर बाहर हॉस्टल में रहना पड़ा। बहुत मुश्किल था वो समय मेरे लिए। खास तौर पर माँ के बिना रहना। मेरी उन् आदतों का क्या होगा जो कभी उसने सुधारी ही नहीं,मेरे बाल बनाना,रोज़ की मेरी स्कूल के किस्से सुनना, आते ही निम्बू पानी देना,बालों में तेल डालना और ना जाने क्या क्या। ये सब तो मुझे उससे जोड़े रखता है,वहां हॉस्टल में कौन करेगा ये सब। शुरू में कठिन था लेकिन आज सोचती हूँ तो लगता है, उन 7 सालों में ली कितनी सीख आज मेरे जीवन को कितना सरल और सुलझी हुई बनाती है।
• Adjustment : सबसे पहला शब्द जो घर के बाहर कदम निकालते ही सीखा। शोर में भी पढ़ना सिखा दिया होस्टल के उस छोटे से कमरे ने। बिस्तर शेयर करना सिखाया था उस छोटे से बेड ने। रूममेट को डिस्टर्ब किये बिना उठना सीखा दिया उस घड़ी के अलार्म ने।
वहीं दूसरी ओर मेरे पति। घर से ही कॉलेज की पढ़ाई की तो उनकी माता का संरक्षण हमेशा उनके पास रहा। इनके कॉलेज जाने के टाइम पर कोई बाथरूम में नहीं जाता। इनके पढ़ने के टाइम कोई TV नहीं चलाता। एग्जाम के टाइम तो मानो मातम सा छा जाता था घर में!!!😂 आज भी उनके आफिस के काम के बीच कोई आ जाये तो बेचारे को उनके कोप का भाजन बनना पड़ जाता है।
• Compromise : हां!! ये शब्द के मायने भी मैंने सीख लिए थे हॉस्टल में। जब हम कुल 150 लड़कियों के साथ रहते हैं जो कहीं ना कहीं हर तरीके से हमारे जैसी ही हैं, तो उनके साथ संबंध बनाने के लिए कभी झुकना पड़ता है तो कभी प्यार से समझना पड़ता है,कभी रूठे को मनाना पड़ता है तो कभी सच और सही के लिए विद्रोह करना पड़ता है लेकिन हां Compromise हर जगह अपनी एक अहम भूमिका निभाता है चीजों को सरल और सौहार्दपूर्ण बनाने में। पतिदेव ने ये शब्द थोड़ा थोड़ा शायद शादी के बाद ही सीखना शुरू किया😅 क्योंकि उनकी परम पूज्य माताजी ने इसकी परिभाषा सीखने का मौका ही नहीं दिया।
• Self Dependence : अपने कपड़े खुद धोना,बालों में तेल लगाना,अपनी फीस का काम बैंक में जाकर खुद करना,अपनी खाने पीने की व्यवस्थाओं का ध्यान रखना,साफ सफाई यहां तक कि नए नए दौर में जब आपके ज़्यादा दोस्त नहीं बने होते तब अपनी तबियत का ख्याल भी खुद ही रखना होता था। अपना काम खुद करने की एक बुरी सी आदत डाल दी थी होस्टल नें जो आज भी कमबख्त पीछा नहीं छोड़ती। सही सोचा अपने...पतिदेव बिल्कुल विपरीत... अपने हर छोटे मोटे काम के लिए हम पर निर्भर। पहले माँ और अब मैं। अगर मैं रात को बाथरूम में उनके कपड़े रखना भूल जाऊँ तो आफिस के लिए लेट होने का इल्ज़ाम मुझ पर। मेरे बहुत कोशिश करने पर अब उनमे थोड़े बहुत बदलाव आए हैं पर फिर भी हर छोटी ज़रूरत के लिए किसी को पूछना पड़ता है... कारण...आदत। जी बचपन से बिना कहे ही जब काम हो जाये तो बात ही क्या और इसका पूरा श्रेय मेरी सासु माँ को जाता है।
 • Decisive: जब हम अपने घर से दूर होते हैं हमारे रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े छोटे छोटे फैसले लेने में सहयोगी साबित होता है हमारे घर से हमारा दूर रहना। क्या चीज़ का सही दाम कितना है और पैसों की अहमियत झट से समझ आ जाती है जो कभी घर पर समझ नहीं आयी थी। महँगे कपड़ों की जिद्द करना भूल गयी मैं,हॉस्टल से जाने के बाद। पतिदेव भी decisive हैं,लेकिन केवल कुछ मुद्दों में। बाकी हमारी सासु माँ से एक बार डिसकस किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता चाहे वो घर में कोई सामान लाने की बात ही क्यों ना हो।
अब आप सोच रहे होंगे,ये मुद्दा क्या है,कहना क्या चाहती हो,ये क्या हॉस्टल और घर से पढ़ने वालों के बीच कोई comparison है? ....नहीं !! उदाहरण में चाहे मैंने अपने बेचारे भोले भाले पतिदेव को खींच लिया हो और केवल हॉस्टल और घर से पढ़ाई का ही तुलनात्मक विश्लेषण किया हो लेकिन सीधे सीधे शब्दों में बात है स्वावलंबन की। हाँ!! वो गुण जो हमारे बच्चों में हमें सबसे पहले डालना चाहये चाहे वो हमारे पास रहते हो या नहीं। खुद पर भरोसा करने का काम जिस दिन उन्हें आ जायेगा,उनके पंखों को फैलने से कोई नहीं रोक पायेगा। Self Dependence,Decision making power,Compromise ,Adjustments वो छोटे छोटे बीज है जो बच्चों के मूल्यों की जड़ों को मजबूत बनाती है।
• अपने बच्चों को आत्मनिर्भर होना सिखाएं। अपनी भौतिक मूल आवश्यकताओं के लिए वो हम पर निर्भर ना रहें। और ये जितना जल्दी शुरू हो उनके लिए उतना अच्छा है।
• उन्हें अपना काम करने के खुद प्रयास करने दें,जब तक वो खुद हार नहीं मानते उन्हें किसी तरह की कोई मदद ना दें।
• अपने आसपास साफ सफाई का महत्व समझाएं। अपनी चीजों को ढंग से रखना,अव्यवस्थाओं से शिकायत करना और उन्हें ठीक करना सीखाएं।
• लोगों के बीच उनके तरीके से रहना और नम्रता से झुकना सीखाएं। उन्हें इस बात का महत्व बताये की दुनिया  हम जैसे लोगों से ही बनी है केवल समन्वय करने की बात है।
बच्चे चाहे दूर रहे या पास,उन्हें स्वयं पर आश्रित रहने का मौका दें और जो कभी लड़खड़ा जाएं तो हम तो हैं ही उनके साथ, हमेशा।
अरे ये लिखने लिखाने और बातें करने में मैं भूल ही गयी कि पतिदेव के खाने का टाइम हो चला है और मुझे रसोई में खूब तैयारी करनी है, चलती हूँ और मिलूंगी कभी कुछ कीड़ा आ चला दिमाग में तो शब्दों में पिरो के आपके पास पहुँचा दूंगी।
                              धन्यवाद!!

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