Friday, July 27, 2018

यादों का पिटारा

दफ़न सा कुछ अंदर ,सुकून नहीं देता
उछलता है इस कदर ,मरने भी नहीं देता


क्या हो तुम जो इस तरह मुझे समेटे हो
परत दर परत ,बस गहरे हो ,गहरे हो


मायूसी का कारण कभी ,कभी बंद जुबां का
बन जाओ लावा कभी ,कभी सिर्फ धुंआ सा


मकसद तो बतलाओ अपने वजूद का
ख़त्म करने मुझे या और तराशने को बैठे हो
बुझा देने मेरे आग -ऐ -जूनून को
या भड़का देने मेरे सब्र को बैठे हो


हारने लगी हूँ अब तुम्हे हराते हराते
अब बहुत हुई जुंग
छोडो मेरा दामन ,हट जाओ परे
सबसे;मेरे ख्याल और मेरा ज़हन


तलाश है मुझे अपने आप की
ना चाह तुम्हारे नाम की
खोजने दो अब मुझे मेरे मुकाम खुद -ब -खुद
पा लेने दो नए आयाम


ये " यादों का पिटारा " कबाड़ में बेंच आऊं

चाहे ना कोई दे इनका कुछ दाम

-श्वेता व्यास 

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