Monday, March 6, 2017

बेटा!! आदमी ऐसे ही होते हैं!!


"Men will be Men" एक ऐड में आपने ज़रूर सुना होगा आजकल। हालांकि मेरा तात्पर्य फिलहाल उससे कहीँ भी मेल नहीं खाता पर हाँ उस विज्ञापन की ये लाइन मुझे मेरे परिवेश की एक सोच से रूबरू ज़रूर कर जाती है।

ये बात दिमाग में कुछ इस तरह आयी।
 कुछ दिन पहले जब मैं अपने मायके गयी हुई थी तो हमारे पड़ोसी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी बेटी भी आई हुई थी । बात ही बात में उसके मन की बात बाहर आई। पता चला कोई छोटी मोटी तक़रार उसके पति और उसमे हो गयी थी और वो नाराज़ होकर अपने मायके आ बैठी थी। मेरे थोड़ी सी सांत्वना देने पर आंटी जी( हमारी पड़ोसी) फूट फूट के रोने लगी और मीरा( उनकी बेटी) की तरफ देख कर उसे थोड़ा कोसने वाले अंदाज़ में बोली," देख ना बेटा!! मैं तो इसे इतना समझाती हूँ आदमी तो होते ही ऐसे हैं, तू चुप हो जाया कर"। और ऐसा कहकर वो मेरी तरफ अपेक्षा भरी नज़रो से देखने लगी।
ऐसा ही एक वाक्या मेरे घर में भी हुआ। मेरी ननद की सगाई एक अच्छे घर में तय हुई। दोनों के बातचीत करने पर कुछ दिन में मनमुटाव होने लगे। विचारधारा को विपरीत परिस्थितियों में जाते देख मेरी ननद ने सगाई तोड़ देने का संकेत किया। इस बात पर मेरी सास ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, " बेटा!! लड़के ऐसे ही होते हैं थोड़ा समझने का समय दो उन्हें!।
कॉलेज के दिनों में भी अक्सर जब पापा मुझे देर तक हॉस्टल से बाहर देखते थे तो डांट देते थे और मम्मी मुझे यही कहकर समझा दिया करती थी," जाने दे ना बेटा.…आदमी लोग ऐसे ही होते हैं.. टेंशन रहती है उन्हें!!!"।
ऐसा नहीं है कि मैं कोई क्रांतिकारी आंदोलन नेता हूँ जिसे किसी तरीके का समझौता पसंद नहीं ना ही मैं कोई नारी सशक्तिकरण संस्था की संचालक हूँ  जिसे समाज में अबला नारी ही नज़र आती है... मुझे तो शिकायत है इस नजरिए से।
ऐसा बोल कर या मान कर की आदमी ऐसे ही होते हैं कहीं हम लोग ही तो हमारे साथ गलत हो रहे बर्ताव को बढ़ावा तो नहीं दे रहे। ऐसा तो नहीं की हम अपने आप को "FULL PROOF" हर तरह की Situation में ढल जाने को तैयार "औरत" बना रहे हो? मेरे ऊपर बतायी हुई घटनाओं से मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि हम समझौता करना सीख जाते हैं अपितु दुःख इस बात का है, हमारे आसपास और यहां तक की लगभग समाज के हर हिस्से में कही ना कही यही सोच होती है कि एक बार हम अपने मन को समझा लें कि आदमी लोग ऐसे ही होते हैं अगर हम समझ जाएं तो ठीक नहीं तो राम भरोसे गाड़ी तो चल ही जाएगी।
अरे साहब !! जब गाड़ी का एक पहिया ठूठ बनकर रहेगा और केवल दूसरे पहिये को ही गाड़ी का खींचने का काम करना है तो बोझ लगना तो वाजिब है ना!! 
खैर छोड़िये!!! अब जो जड़ों में बैठ गया उसे तो नहीं उखाड़ सकते लेकिन जो कोंपल नयी खिलने वाली है उसे तो एक नयी विचारधारा से सींचा जा सकता है। उसमें परिवर्तन की खाद तो डाल सकते हैं ना। हमारे बेटों को औरत का सम्मान करना तो सिखा सकते है  ना। उन्हें ये पाठ तो पढ़ा सकते हैं ना की औरत के बिना उनके जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है। हमारे बच्चों को और आने वाली पीढ़ी को ये सबक तो सीखा सकते हैं ना की ज़िन्दगी की गाड़ी प्यार से तभी चलती है जब दोनों पहिये ढंग से चलेंगे। हमारे बच्चों को इस " खुद हमारे ही बनाये भेद" से दूर रख सकते हैं ना!!!
ताकि कभी हमारी बेटियों को कभी हमें ये कह कर ना समझाना पड़े," लड़के तो होते ही ऐसे है बेटा!!!"
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