Monday, March 6, 2017

कफ़न का टुकड़ा !! STOp DoWRY Otherwise This Would Be Story Of You Someday


आज मेरे बेटे के स्कूल में Poem Recitation Competition था। उसने भी प्रतियोगिता में भाग लिया था इसलिए मेरा चाव दुगुना हो गया था।

कविता बोलने की प्रतियोगिता बहुत ही रस भरे अंदाज़ में आगे बढ़ रही थी। माता पिता भी  बहुत उत्साह से नन्हे मुन्नों की कविताएं सुन रहे थे और ताली बजाकर उनका उत्साह बढ़ा रहे थे।
कोई मेरे पापा ,कोई मेरा Best Friend, कोई नानी की कहानी और ना जाने कितने अच्छे अच्छे और प्यारी प्यारी आवाज़ो में कविताएं पढ़ रहे थे।
फिर वो कविता आयी जिससे वहाँ बैठे हर व्यक्ति की आँखे डबडबाई हुई थी। जो शोरगुल कविताओं के बीच में हंसी ठिठोली का माध्यम बन रहा था , वो कुछ देर तक सन्नाटे में परिवर्तित हो गया।
अगर आप भी इस कविता को पढ़ेंगे तो निश्चय ही आपके मन को व्यथित कर देगा और ये बिलकुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी शायद वो व्यथा आपके आँखों में से नीर की तरह बहने लगे।
 स्कूल की एक टीचर ,जो मेरी बहुत अच्छी सहेली भी थी उनसे पता चला वो पहले अनाथ आश्रम में थी पर विशिष्ठ प्रतिभा के कारण स्कूल के एक स्पॉन्सरशिप प्रोग्राम के अंतर्गत उसे इस स्कूल में पढ़ने का मौका मिला था।   
"मानसी कह रही थी ये कविता उसके बड़ी बहन ने लिखी थी कभी जो उसके पिताजी मरने से पहले उसे दे गए थे।", टीचर ने कहा।
उस बच्ची का मासूम चेहरा, उसके आँखों का तेज और फिर ऊपर से टीचर का ये कहना की उसकी कविता किसी का पत्र है...मेरी जिज्ञासा और बढ़ रही थी।
" नमस्कार!!मेरा नाम मानसी है।  और मैं दहेज़ प्रथा पर कविता सुनाना चाहती हूँ।"
उस मासूम सी आवाज़ में जैसे गहरा दर्द था। इतनी नन्ही सी लड़की दहेज़ जैसे संवेदनशील विषय पर कविता, सोच सोच कर ही मेरे रौंगटे खड़े हो रहे थे।
खैर!! कविता शुरू हुई।
एक पिता ने घर में प्रवेश करते ही अपनी पत्नी से कहा
अरे मुन्ने की माँ! सुनती हो!
एक खुश खबर लाया हूँ,अपनी रीना बेटी के लिए रिश्ता देख के आया हूँ
वो जो शर्मा जी हैं ना, उन्ही का बेटा है
अच्छा खानदान है,इज़्ज़तदार इंसान है
तो पत्नी बोली, ऐसा है तो पंडित को बुलवाइए और शादी का अच्छा सा मोहरत निकलवाईये।
पंडित के मोहरत निकलवाने के बाद शादी की तैयारियां होने लगी
रीना भी अपने ख्यालों में खोने लगी
वक़्त गुज़रा, शादी की तारीक़ भी आ गयी
शहनाई बजने लगी और बारात भी आ गयी
मजबूत हो पिता ने कन्यादान किया था
सोने से लगाकर गाड़ी तक दहेज़ दिया था
पर दहेज़ के लोभियों की भूख थी बाकी 
नहीं भेजा बिटिया को घर निकली दूसरी राखी
पिता ने  बेटे से कहा ,जाओ बेटा बहिन को भेजे तो घर ले आओ
राखी पर भाई अपनी बहन के घर गया
देखते ही वह सन्न रह गया
वहाँ एक मातम सा छाया था
मानो कोई भारी तूफ़ान आया था
ये सुनते ही बहना गुज़र गयी
भाई का दिल घबराने लगा
आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा
अपनी सूनी कलाई लिए वो फिर से घर आ गया
दूसरे ही दिन रीना का पत्र मिला था जो उसने मरने से पहले लिखा था
"पिताजी, अपनी बिटिया का अंतिम प्रणाम लीजिये
मिलूंगी ना फिर कभी अंतिम आशीष दीजिये
जा रही हूँ छोड़कर सारे जहां को
भाग्य मेरा है यही मंज़ूर भगवान् को
सोचा था ससुराल मे मुझे प्यार मिलेगा
हर दिन सूरज मेरा हंस हंस के ढलेगा
पर होनी कब अनहोनी होती ये तो विधि का लेखा है
मेरी ही किस्मत ऐसी किसने किस्मत को देखा है
लाड प्यार से पाली वहाँ, यहाँ कैसे कैसे ज़ुल्म सहे
पिताजी!! सब कुछ दिया आपने...बस कफ़न का टुकड़ा देना भूल गए...कफ़न का टुकड़ा देना भूल गए।"
डबडबाई आँखों से वो नन्ही सी बच्ची मुझे धुंधली सी नज़र आने लगी लेकिन उसकी आवाज़ का दर्द वहां खड़े हर शख्श को साफ़ सुनाई दे रहा था।
सोच में बदलाव आएगा तो शायद एक कदम हमारा एक ऐसे और पत्र को रोक सकता है!!!

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