Wednesday, April 5, 2017

माँ या सासु माँ !!

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सुबह 10 बार आवाज़ लगाने पर भी ना उठती कभी,आज 6 बजे उठकर चाय बनाने लगी।अखबार ले आयी,पौधों को पानी दे दिया,पापा को मॉर्निंग वॉक पर जाने के लिए जगाने आ गयी.....आखिर ये चक्कर क्या है। घर के सब लोग पल्लवी को बड़ी आश्चर्य मुद्रा में देखे जा रहे थे। जब सब के सब्र का बांध टूट गया तो उसने मासूम से लहज़े में कहा," वहाँ ससुराल में थोड़ी कोई होगा मेरे आगे पीछे घूमने के लिये"।

शादी फिक्स हुए अभी 3 महीने ही हुए थे और पल्लवी की समझ में इतना परिवर्तन , बेटी को बड़ी होते देख सब खुश भी थे और दुखी भी।
शादी हुई, पल्लवी अपने नए घर आयी। सुबह नींद नही खुलेगी सोचकर वह पूरी रात नहीं सोई। जल्दी नहा धोकर , पूजा कर अपनी पहली रसोई की तैयारी की सोचने लगी। क्या बनाऊ जो सबको अच्छा लगे, बच्चो को भी पसंद आये....इस कशमकश में लगी थी कि एक सहज मीठी सी आवाज़ आयी," पल्लवी तुम इतना जल्दी क्यों उठ गई बेटा?"।
राहत का चस्का था उन् स्वरों में, पल्लवी ने पीछे मुड़ के देखा तो सासु माँ हाथ में शादी के हिसाब के कुछ पन्ने लिए खड़ी थी। 
" शादी की दौड़भाग में कितना परेशान हो गयी होगी, फिर घरवालो की याद भी आ रही होगी,ऐसे में अगर नींद पूरी नही करोगी तो अपनी तबियत बिगाड़ लोगी"। सासु माँ ने हिसाब के पन्नो को टेबल की ड्रावर में रखते हुए कहा।
ये क्या!!! ये तो बिल्कुल वैसी नही है जैसा मैंने सोचा। मैं तो पिछले कितने महीनों से जल्दी उठने की प्रैक्टिस कर रही थी और यहाँ तो कुछ और ही हो गया।
मेरी पूरी पढ़ाई घर से दूर रह कर हुई थी,होस्टल में, जिस कारण मैं घर के कामों में उतनी कुशल नही थी जितना एक नई बहू को होना चाहये। पहली रसोई में एक रोटी बनाए जाने का रिवाज है हमारे यहां, आटा ज़्यादा गीला हो जाने की वजह से रोटी उतनी गोल नही बनी जितनी बननी चाहये। मन में बहुत डर लग रहा था बहुत बुरा भी लग रहा था। मन ही मन माँ को कोस रही थी क्यों मुझे डांट कर अच्छे से घर का काम नही सिखाया।
सुबह की रस्म जैसे तैसे हुई। सब लोगो के लिए खाना बनाने की तैयारी हो रही थी। मैं किचन में खड़ी समझने की कोशिश कर रही थी कि कुछ प्रयास मैं भी करूँ खाना बनाने का। तभी वही आवाज़ वापस आयी। "पल्लवी, देखो आज मैं क्या बना रही हूँ? मटर पनीर की सब्ज़ी, गाजर का हलवा और लच्छे पराठे।"
ये क्या !! ये सब तो मेरी पसंद के सामान है ,मेरी फेवरिट डिशेज़। समझ में नही आ रहा था कोई सपने में तो नहीं कह रहा। नहीं नहीं ये तो सासु माँ ही बोल रही है।
मेरे थोड़े सहमे ,थोड़े डरे, थोड़े विस्मयी भावो को शायद भाँप लिया था उन्होंने। वो मेरे पास आई और मुझे बिठाकर बोली
" शादी लड़की की परीक्षा नहीं है पल्लवी, जहां कदम कदम पर उसे किसी टेस्ट में पास होने पर नंबर दिए जाएं।तुम्हारी शादी केवल मेरे बेटे से नहीं हुई है। जितनी तुम्हारी खुशियों की ज़िम्मेदारी मेरे बेटे की है उतनी हमारी भी। मैं तुम्हे इस घर में केवल काम करवाने, तुम्हारी खूबियों को परखने,तुम्हारी अज़ादी को छीनने, या तुम हमारे लिए क्या क्या बलिदान कर सकती हो ,ये जानने के लिए नही लायी हूँ। मुझे तो सिर्फ एक दोस्त एक साथी चाहये जो मैं कभी कमज़ोर पड़ जाऊ तो मुझे संभाल सके। धागे का वो हिस्सा चाहये जो घर के सारे मोतियों को प्यार और स्नेह की  माला में पिरोये रखे। मैं नही मानती की बहू को सुबह जल्दी उठकर नाहा धोकर पूजा कर लेनी चाहए या उसे खाना बनाने में दक्षता हासिल होनी चाहये। अगर उसे कुछ आना चाहिए तो वो है "प्यार करना"...परिवार से, छोटे छोटे बदलाव से और सबसे ज़रुरी खुद से....हां!!! बिल्कुल ठीक सुना तुमने...जब तक तुम खुद से प्यार नही करोगे तुम खुश नही रह पाओगी। ये शादी तुम्हारे सपनो की क़ुरबानी नही है बेटा, तुम्हारे सपनो की उड़ान है। हम सब तुम्हारे साथ है.... हर कदम, हर पल, हर समय।
और आज हमारे परिवार के नए सहदस्य का स्वागत हम उसकी बनाई हुई पसंदीदा खाने से करके कर रहे हैं।" आज पल्लवी की शादी को 9 साल हो गए है, लेकिन उसने अपनी शादी से जो सबसे अनमोल रिश्ता कमाया था वो था "माँ" ....हां.... वही सासु माँ अब माँ बन गयी थी। बहुत उतार चढ़ाव देखे थे पल्लवी ने अपने जीवन में, कभी miscarriage, कभी पैसो की कमी,कभी पति से झगड़ा, कभी बच्चो की टेंशन ,लेकिन आज भी मन से जुड़ीं है वो अपनी सास से। हर पल वो यही कामना करती है की जब उसका बेटा बहु लेकर घर आये तो वो उसकी सास जैसी सास बन सके, या उनका अंश ही सही।
समाज के कुछ हिस्सों में एक भी सास माँ बनने में विश्वास नही रखती पर मेरी गुज़ारिश है ,जब हम किसी लड़की को घर में लाये तो उसको उसकी कमियों के साथ स्वीकार करें, अपने बच्चों को गलतियों पर डांटकर भी तो फिर से उन्हें पुचकार लेते हैं ना, वही हम उनके साथ भी करें। 
ये लेख उन सभी सासु माँ को समर्पित है , जिन्होंने अपने प्यार,व्यवहार,सोच से Mother in law की Stereotypic छवि को बदलने का बीड़ा उठाया और नारी का नारी को सम्मान करना सिखाया।
                  "Thank-you Maa"

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